वो बचपन, वो यादें,
मम्मी से छोटी-छोटी फरियादें,
पर अब तो...........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो फ्रॉक पहन के उछलना,
लुगड़ी के लिए झगड़ना,
छोटी-छोटी चैतें करके,
छम्बों पे जा छिपना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
मम्मी जब दो चोटियां बनाती थी,
उस पर प्यारा सा रिबन लगाती थी,
और वो गांव की चाची,
जो मुझको चिढ़ाती थी,
पर अब तो...........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो दादी के अखरोट
चुराना,बड़े प्यार से झोऌ को
खाना,और वो लालच में,
कैन्थों के काटें चुभ जाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया
हूं,वो धान के खेतों में ऊर लगाना,
और कीचड़ में गिर जाना,
ताई से
कहकर,बोरी का झुम्ब बनबाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो चोबू से गिर जाना,
छुपछुप के बर्फ के गोले खाना,
वो उछल उछल के,
तड़ल्ल को छूने की शर्त लगाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ,
बडा
सा बस्ता लेकर स्कूल को जाना, चाय के बागानों से पत्तियां लाना,
और बकरी के दूध के संग,
बडे चाव से दतैलु खाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो छरूड़ू में नहाना,
बागों से सेब चुराना,
और नन्हे-नन्हे हाथोँ से,
धौलाधार कर ऊँचाई का अनुमान लगाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ,
इस दुनियादारी में,
बेकारी में, कहीं खो गया हूं,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
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भूमिका: पाठकगण ध्यान दें कि यह कविता हिमाचली परिवेश में गयी है अतः पहाडी भाषा के कुछ शब्दॊं का इस्तेमाल किया गया है जिनके मतलब नीचे दिए गए हैं साथ ही यह भी जान लिया जाए कि बचपन में घर में लडकी ना हॊने के कारण शुरूआती दिनॊं में लेखक का पालन पॊषण कन्या की तरह हुआ था अतः पाठक पंक्ति संख्या ५,११, एवं १२ के कारण शंकित ना रहें !लुगड़ी= पतीले में चावल बनाने के बाद बचा हुआ पानी, चैतें= शरारतें , छम्ब= ढ़लान नुमा छॊटी पहाड़ियां, झॊऌ= लस्सी और मक्की से बना तरल खाघ,कैन्थ= कंटीला फलदार पेड़, ऊर= धान के पौधे रॊपना, झुम्ब= खेतॊं में काम करते समय बारिश से बचने हेतु इस्तेमाल किया जाना वाला पहनावा, चौबू= कच्चे घरॊं में दूसरी मंजिल से उतरने वाला स्थान जहां सीढ़ी का उपरी सिरा हॊता है, तल्लड़= कच्चे घरॊं में स्लेटॊं के नाचे सामान रखने के लिए बनाया गया लकडी का लैंटर, दतैलु = नाश्ता, छरूड़ू = झरना.