मंगलवार

पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ

वो बचपन, वो यादें,
मम्‍मी से छोटी-छोटी फरि‍यादें,
पर अब तो...........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो फ्रॉक पहन के उछलना,
लुगड़ी के लि‍ए झगड़ना,
छोटी-छोटी चैतें करके,
छम्‍बों पे जा छि‍पना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
मम्‍मी जब दो चोटि‍यां बनाती थी,
उस पर प्‍यारा सा रि‍बन लगाती थी,
और वो गांव की चाची,
जो मुझको चि‍ढ़ाती थी,
पर अब तो...........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो दादी के अखरोट चुराना,
बड़े प्‍यार से झोऌ को खाना,
और वो लालच में,
कैन्थों के काटें चुभ जाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो धान के खेतों में ऊर लगाना,
और कीचड़ में गि‍र जाना,
ताई से कहकर,
बोरी का झुम्‍ब बनबाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो चोबू से गि‍र जाना,
छुपछुप के बर्फ के गोले खाना,
वो उछल उछल के,
तड़ल्‍ल को छूने की शर्त लगाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ,
बडा सा बस्‍ता लेकर स्‍कूल को जाना,
चाय के बागानों से पत्‍ति‍यां लाना,
और बकरी के दूध के संग,
बडे चाव से दतैलु खाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
वो छरूड़ू में नहाना,
बागों से सेब चुराना,
और नन्‍हे-नन्‍हे हाथोँ से,
धौलाधार कर ऊँचाई का अनुमान लगाना,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ,
इस दुनि‍यादारी में,
बेकारी में, कहीं खो गया हूं,
पर अब तो..........
पर अब तो मैं बड़ा हो गया हूं,
______________________________
______________________________
भूमिका: पाठकगण ध्यान दें कि यह कविता हिमाचली परिवेश में गयी है अतः पहाडी भाषा के कुछ शब्दॊं का इस्तेमाल किया गया है जिनके मतलब नीचे दिए गए हैं साथ ही यह भी जान लिया जाए कि बचपन में घर में लडकी ना हॊने के कारण शुरूआती दिनॊं में लेखक का पालन पॊषण कन्या की तरह हुआ था अतः पाठक पंक्ति संख्या ५,११, एवं १२ के कारण शंकित ना रहें !

लुगड़ी= पतीले में चावल बनाने के बाद बचा हुआ पानी, चैतें= शरारतें ,
छम्ब= ढ़लान नुमा छॊटी पहाड़ियां, झॊ‍ऌ= लस्सी और मक्की से बना तरल खाघ,
कैन्थ= कंटीला फलदार पेड़, ऊर= धान के पौधे रॊपना, झुम्ब= खेतॊं में काम करते समय बारिश से बचने हेतु इस्तेमाल किया जाना वाला पहनावा, चौबू= कच्चे घरॊं में दूसरी मंजिल से उतरने वाला स्थान जहां सीढ़ी का उपरी सिरा हॊता है, तल्लड़= कच्चे घरॊं में स्लेटॊं के नाचे सामान रखने के लिए बनाया गया लकडी का लैंटर, दतैलु = नाश्ता, छरूड़ू = झरना.

16 टिप्‍पणियां:

  1. शब्दों का अर्थ देकर बहुत अच्छा किया. वैसे भी प्यारे भाव समझ तो आ रहे थे मगर अर्थ जानकर फिर पढ़ा तब और ही आनन्द आया.

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  2. अच्छी रचना है\ साथ मे अर्थ लिखे यह अच्छा किया क्यूँकि कुछ शब्द जैसे लुंगड़ी मै समझ नही पाया था।

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  3. सुनील बहुत अच्छा लगा बचपन को हमे भी याद दिला दिया सभी के साथ ऐसा होता है माता-पिता अधिकतर लड़को को लड़की बना कर और लड़कियों को लड़का बना कर रखते है बचपन की बातें खट्टी-मीठी और बडी़ प्यारी होती है...
    तुम्हारी कविता में भी वही प्यारा नटखट खेल रहा है
    मगर काश बचपन हमेशा कायम रह पाता अब तो तुम बडे़ हो गये हो,
    मेरी शुभ-कामनाएं है एसे ही बड़े होते रहो और उन्नति के चरम शिखर पर पहुँचों...

    सुनीता(शानू)

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  4. abhi kuch hi dino pehle "khabri ji " ke blog par ek kavita padhi thi....vo bhi bachpan par hi thi....laga ye rachna usi kavita ka doosra roop hai....
    bachpan me le jaane ke liye dhanyawad....
    par haan...ab to main bada ho gaya hu...."
    bahut bahut mangal kamnayein....

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  5. बहुत खूब मित्र। हिमाचली परिवेश में और गंवई देश में हमें ले जाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आप इसी तरह बड़े होते रहें और हमें अपनी अनुभवों से परिचित कराते रहे, यही हमारी दुआ है।

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  6. मजा आ गया दोस्त । वही मानी हुई बात - कि जो जहाँ से निकलती है , उसकी परिणति वही विलीन हो जाने मे होती है - फिर से सच होती दिखी । आपके दिल से निकली हुई बात पहुची तो दिल तक ही , बस जगह बदल गया ।

    और बडे़ बने आप, यही शुभकामना है।

    श्रवण

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  7. बेनामी5/31/2007

    aapne bahut hi achcha likha hai :-D
    50 panktiyon mein aapne pooraa bachpan itnee saralataa se samet diya.....aur himachali parivesh se hamari mulakaat bhi karwa di...:-)
    Awesomely Done!!!
    Aap jaise lekhak ko 'Keep it up' kehna mujhe shobha nahi deta isliye nahi kahungi!!!!

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  8. सुनील
    आनंद आ गया यह कविता पढ कर, बचपन तो आपने याद दिलाया ही। बहुत ही स्तरीय रचना है जो भावुक भी कर देती है। बधाई आपको।

    *** राजीव रंजन प्रसाद

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  9. Vah ! Mitr !
    Bachpan ki shararton ko sweekar kiya to bhi ek shararti kavita rach kar !
    galtiyon ko sweekar karna vyaktitv ki saumyata ka pratik hai; arthat Saumy Vayaktitv wale Mahashay !
    par naam Zaalimm !
    matlab yahaan bhi Sharartt !
    mujhe to nahin lagta ki aap abhi bare hue hain !

    ShubhKamnaon Sahit -
    Vinay Kumar

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  10. अच्छी रचना है, बधाई.

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  11. "अब तो मैं बड़ा हो गया हूँ"

    बात बनी नहीं । आप बचपन को ढूंढ रहे हो या योवन को कोस रहे हो?
    अंतिम पंक्तियां मेल नही खातीं, कुछ यूँ कहा होता--

    चुंकि---
    अब मैं बड़ा हो गया हूँ'
    केवल सुझाव मात्र। काविता तो आप ही की है।
    Ja'

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  12. rechna vakai bahut achchee hay seedhee ..serel.....dil ko chu lene valee.

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  13. rechna vakai bahut achchee hay seedhee ..serel.....dil ko chu lene valee.

    जवाब देंहटाएं
  14. aap ki rachna mai ek baat hoti hai jo hame aap ki taraf khinchti hai...is kavita mai aapne apne bachpan ka chitran bahut hi achhe tarike se kiya hai...han magar ek baat kahana chaunga ki kuch aise hi kavita 'khabri ji' ne bhi likhi thi ...kahni yah usi ki prerna se to nahi likhi gaye hai ....magar jo bhi ho..
    kavita mai aapne apne bare mai likha aur himachli shabdo se parichit karaya..achha laga.

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  15. sunil
    himachali perivesh mein likhi ye kavita aapke bachpan ko etna acha chitrit ker gayi hai ki aapko padhte hue mein bache ke roop dekh reha tha ...wah ...behad sahaj bhasha aur nirmal..sacha bayan ....

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