मयखानों में पीने वाले भी क्या पीते हैं
चन्द पलों के नशे के बाद फिर दुनिया में जीते हैं
मदहोश तो वो होते हैं 'जालिम' जो सदा नशे में रहते हैं
जाम नहीं छलकाते वो महबूबा की आखों से जो पीते हैं
मयखानों में जाने वाले पैमानों को आजमाने वाले
जाम खत्म हो जाने पर तन्हा तन्हा रह जाते हैं
चैन तो मिलता है उनको जो बिना किसी पैमाने के
आखों में आखें डाले अपनी प्यास बुझाते हैं
कुछ एसे भी होते हैं 'जालिम' जो रोते हैं चिल्लाते हैं
दिल के टूटने के बाद मयखाने चले जाते हैं
वो पागल नहीं जानते मयखाने के जाम पल भर याद भुलाते हैं
नशा उतरता है जैसे ही 'जालिम' फिर अश्क बहाते हैं
मयखानों मे जलने वालो रफ़ता रफ़ता मरने वालो
क्यों काफिर जग के जुमले सहते जाते हो
जामों से क्यों खुद को तड़पाते हो
नित जीने का नशे में रहने का इक राज तुम्हे बतलाता हूं
ना कह देना किसी से कि मैं भी इसको अपनाता हूं
नशे के आदि हो तो पी तो महबूबा आखों से पी लो
जाम नहीं, पैमाने नहीं दिन रात फिर जन्नत में जी लो
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सुन्दर है। प्रयास जारी रखें। आपकी सोच सराहनीय है।
जवाब देंहटाएं*** राजीव रंजन प्रसाद
क्या कभी शराब पी है दोस्त?
जवाब देंहटाएंकविता में लोक-राग की लय प्रशंसनीय है । अपनी भाषा की अनुदित रचना आप मुझे भेज सकते हैं । प्रकाशनार्थ । चाहे वे लोक की हों या लिखित कविताओं का अनुवाद क्यों न हो । www.srijangatha.com
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