शुक्रवार

जमीं वाले चादं की कहानी

इक चादं एसा भी है जि·समें दाग़ ही नहीं है
इत्तेफाक यह भी अजब है बेदाग चादं आसमां में नहीं है
जान लो अब वो राज भी तुम जो कभी दफन हो गए
इक भूल हो गई खुदा से और दोनों चादं ही बदल गए
हुआ यूं कि दाग़ जिस चादं में था वो तो सितारों में रस गया
और कुदरत का करिश्मा देखिए बेदाग चादं जमीं पे बस गया
खैर थी इतनी भी 'जालिम' पर हद तो तब हो गई
जमीं बाले चादं के दीदार करने की इजाजत जब हमें मिल गई
बात इतनी भी होती तब भी खैरियत थी
पर सच मानिए उन्हे देखते ही हमें मोहब्बत हो गई

3 टिप्‍पणियां:

  1. ज़ालिम जी, आपकी कविता में बिलकुल नया प्रयोग है। चाँद से महबूब की तुलना करना कोई नयी बात नहीं है। मगर आपका राज़ बताने का तरीका नया है। बहुत खूब!

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  2. प्रस्तुतिकरण का बिलकुल अनूठा तरीका है..पसंद आया..

    *** राजीव रंजन प्रसाद

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  3. hume aapki rachnaa bahut pasnd aai. humara blog wwwsandeep.parjapati.blogspot.com or email-sandeep.parjapati140@gmail.com contect kre

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