सोमवार

मेरे प्रश्‍न को हल कर दो

जरा सुनो मेरे प्रश्‍न को हल कर दो
तुमने तो पी.एच.डी. कि‍या है
डि‍ग्रि‍यों से तुम्‍हारा घर भरा है
मौलवी साहब रूकि‍ए
अच्‍छा ज्‍योति‍षी जी आप ही सुनि‍ए
अरे कोई तो मुझे बताओ
यह जो खून बि‍खरा पड़ा है
मज़हबी दगों की भेटं चढ़ा है
यह खून कि‍सका है
हि‍न्‍दू का है या कि‍सी मुसलमान भाई का
कि‍सी सि‍क्‍ख का है या फि‍र इसाई का
किसी और का है तो भी बताओ
जरा सुनो मेरे प्रश्‍न को हल कर दो
ऐसी भी क्‍या खता हो गई
जो तुम सुनते भी नहीं
जरा सी बात पूछता हूं
यूं फर्क बता देते हो लाखों
दगों के वक्‍त बताते हो
अब भी बता दो मुझको
जरा इस खून की पहचान करो
फायदे में रहोगे तुम
बि‍मार हो जाओगे कभी
तो देंगें खून तुम्‍हे तुम्‍हारे मजहब का ही
पर अफसोस
तुम नहीं बता सकते
यह जो सुर्ख हुई है धरती
इस पर खून पड़ा है
वो इक इन्‍सान का है
इसलि‍ए चुप हो जाओ
खामोश
क्योंकि मजहब नहीं सि‍खाता
आपस में बैर करना
क्योंकि खून से बड़कर रि‍श्‍ता कोई नहीं
फि‍र तुम सब का तो खून एक सा है
नहीं मानते हो तुम अगर
'जालि‍म' तर्क से समझाओ
और मेरे प्रश्‍न को हल कर दो
लेकि‍न तुम नहीं कर सकते
इसलि‍ए हर जीवन में खुशी का रंग भर दो

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने सुनिलजी,

    मज़हब कभी भी आपस में लड़ना नहीं सिखाता, मानवता का लहू बहाना नहीं सिखाता...

    इनके पास आपके सवालों का जवाब नहीं है, ये तो मात्र निज स्वार्थ के लिये मानवता को कलंकित करते आये हैं।

    आपकी लेख़नी बहुत कुछ कह रही है, काश वे सुन पायें, कुछ समझ पाये।

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी कविता है, लेखन जारी रखें। बधाई।

    *** राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  3. ज़ालिम जी,

    इस पहेली को कोई गणितज्ञ नहीं, कोई इनसान ही हल कर सकता है। और दुनिया हैवानों से भरी पड़ी है, शायद इनका उत्तर किसी के पास नहीं है।

    जवाब देंहटाएं
  4. आपके चिंतन को नमन करता हूँ । काश आपकी रचना लोगों की सोच बदल सकती ।

    जवाब देंहटाएं
  5. ज़ालिम जी आपकी कविता अत्‍याधिक अच्‍छी लगी आशा है इसी प्रकार की कविता आगे भी लिखते रहेगें शुभकामनाओं सहित

    जवाब देंहटाएं
  6. बेनामी5/30/2007

    Ati uttam vichar aur utna hi achcha lekhan...

    जवाब देंहटाएं

Related Posts with Thumbnails