बुधवार

उडती चिडिया

सरहद सीमा क्या हॊती है,
उडती चिडिया क्या जाने,
घॊंसला जॊ इधर बना के,
दाना चुगने उस पार चली जाती है,
वॊ सन् संतालिस का बंटबारा,
धरा कॊ बांट दिया जिसने,
उडती चिडिया क्या जाने,
दर्द क्या हॊता है माँ का,
जॊ बच्चॊं से जुदा हॊ जाती है,
धर्म के नाम पर लडते हैं जब,
नीलाम करते हैं बहु बेटी की इज्जत,
उडती चिडिया क्या जाने,
पैंसठ इकहत्तर की लडाईयाँ,
कारगिल में किसका खून बहा,
आतंक का साया हरता है बच्चॊं कॊ जब,
बूढा बाप बिन आसूँ के रॊता है,
उडती चिडिया क्या जाने,
शिखर वार्ता की नाकामी,
पंजाब में बच्चा क्यॊं रॊता है,
दिल पे क्या गुजरती है,
जब जिक्रे कश्मीर हॊता है,
उडती चिडिया क्या जाने,
जब अमेरिका टाँग अडाता है,
जब जालिम सॊ नहीं पाता है,
तालीम से हट कर जब,
पैसा हथियारॊं में लग जाता है,
उडती चिडिया क्या जाने,
मन कॊ कितना सकूँ मिलता है,
जब दॊस्ती का नारा छपता है,
सरहद पार से पैगाम जब आता है,
बसें चलती हैं जब अमन से,
उडती चिडिया क्या जाने,
वॊ दिन कितना खुशनुमा हॊगा,
जब दॊ मुल्कॊं में अमन हॊगा,
हम कराची में घूमेंगें,
और वॊ जामा मस्चिद में शीश नवाएगें.
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13 टिप्‍पणियां:

  1. बेनामी6/27/2007

    भगवान कि बात भगवान जाने ! अल्लाह् कि बात अल्लाह् जाने!
    काश आपकि बात अल्लाह और भगवान दोनो जाने

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  2. यह कविता जैसी नहीं लग रही है। १००% गद्य भी ठीक नहीं।

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  3. सुन्दर भाव है रचना में
    एक गीत की पंक्तियां याद आ गयी

    "मालिक ने हर इन्सान को इन्सान बनाया
    हमने उसे हिन्दू या मुस्लमान बनाया
    कुदरत ने बकशी थी हमें एक ही धरती
    हमने कही भारत कहीं ईरान बनाया"

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  4. विषय तो अच्छा सा चुना आपने;बिम्ब भी फण्डू थे। देखिये,बिना भाव के तो कोई रचना ही नही होती,खासकर कविता... और इन्ही भावों का सम्प्रेषण मे रचयिता एवं रचना का आकलन होता है। पर यहाँ बात कुछ जम नही पाई दोस्त;शब्दो ने पूरी तरह से आपका साथ नही दिया। एक बात बोलूँगा,आपकी परिपक्वता आपको बुरा नही मानने देगी। रचना जन्म देने के समय प्रसव पीड़ा का दर्द तथा ब्रह्म होने की खुशी निष्पक्ष आकलन नही करने देती।सो रचना को लिखने के बाद कुछ दिन छोड़ दें और फिर उसे निहारे- संपादन की आवश्यकता नजर आने लगेगी। ये सामान्य बात है,इसे इस रचना के साथ नही देखेंगे,यही गुजारिश है।
    वैसे रचना मे शिल्पगत सुधार कर दिया जाय,तो जालिम की जालिमी सबको महसूस होने लगेगी।

    सस्नेह,
    श्रवण

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  5. bahut sunder rachna hai,sunil. chidiya ke maadhyam se dil ki baat bahut hi sahaj shabdo mei kah di. bahut achhe.

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  6. Its gud....yah gadya kaavya hai....yeh bhi kavita likhne ka ek tareeka hai.....i find a deep sense of petriotism in you....n high sense of thoughts....thats gud keep it up.

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  7. नि‍ज जीवन के दो आधार नेताजी सुभाषचन्‍द्र बोस एवं महात्‍मा गान्‍धी जो आप्ने लिखा है उससे मै सहमत नही हूँ! सुभाषचन्‍द्र बोस तक तो थीक है पर गान्‍धी को मै इस देश के बर्बादी का कारन मानता हूँ!गान्‍धी की जगह यदि भगत सिह या चन्द्र्सेखर आजाद होते तो श्रेस्त होता

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  8. संजीव जी,
    गान्धीजी कॊ देश की बर्बादी का कारण कहना सत्य के अपमान के साथ साथ राष्ट्रद्रॊह भी है। अरे बापू ने तॊ कभी किसी का बुरा नहीं किया वे तॊ महात्मा थे। इस सम्बन्ध में मैं आपकॊ तार्किक बहस के लिए शीघ्र ही आमंत्रित करूंगा। वैसे मैं युवा गान्धीवादी हूं।

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  9. Dogra ji , Sanjiv ji ke Gandhi ji ke bare mai jo bhi vichar hai..we unki alpbuddhi ke karan hai ...we gandhi ji ke bare mai isliye aisa kah rahe hai kyonki unhe unke bare mai sahi gyan nahi hai...so aap unki baat ka bura mat maniye...
    Aapki kavita ke bare mai kahna chaunga ki bahut achhi rachna hain..chidiyan ke madhyam se desh ke batware ko kendrit kiya hai...tatha rashtr bichoe ka chitran bahut hi marmik dhang se kiya gaya hai ....
    keep it up....aap apna kam karte rahiye...logon ke vichron ko unke pas hi rahne dijiye..

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  10. बेनामी4/30/2008

    Sarcasm और कविता का अद्भुत मिश्रण... बेहद खूबसूरत

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  11. बहुत सुंदर, आलोचनाओं से परेशान नहीं होना , लिखते रहो

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